*रक्षा-बंधन के सुअवसर पर अवश्य पढ़िए, ये लघुकथा--"नापाक रिश्ता"*

*रक्षा-बंधन के सुअवसर पर अवश्य पढ़िए, ये लघुकथा--"नापाक रिश्ता"*
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*बहन ने धर्मभाई के कलाई पर राखी बाँधी, चन्दन की टीका लगाई, आरती उतारी और महिमा-मंडित, प्रेम-पुष्पित 'कर' से मिठाई खिलाई ।
                                 न परिचय, न पाती...। अनाथ को बहन ने धर्मभाई बनाया था , अपनी छत्रच्छाया में उन्हें भरकोशिश पढ़ाया-लिखाया और 'चार्टर्ड - अकाउंटेंट' जैसे 'जॉब' दिलवायी------- आमदनी की अम्बार सजी । प्रथम अवकाश में धर्मभाई सावन पूर्णिमा से एक दिन पूर्व बहन के पास आया था ।
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थी तो पूर्णिमा की रात......
और रात में....................
कमरे में अँधेरे होने का फायदा उठाया --------
"म.......मैं........मैं.........कंचन हूँ, रमण ! .....तुम्हारी दीदी....कहीं बहन के साथ....... ऐसी नीच हरकतें.................।"
                                    तबतक दरिंदे भाई ने माँ-तुल्य धर्मबहन की चोली और चुनरी को उनकी देह से अलग कर दिया था तथा अपनी कामवासना से उस पवित्र रिश्ते को कलंकित किया ।
http://rtimessenger.blogspot.in/2016/08/blog-post_16.html
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बहन ने भाई को सबकुछ दी और बदले में भाई ने उस देवी को कोठेवाली बना दिया, जिनका नाम कंचन बाई है । हाँ, कंचन आज वेश्या है, जिनकी हर रात नए-नए ग्राहकों के बाँहों में बीतती है ।*
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लघुकथा 'नापाक रिश्ता' के बारे में :----
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*पाठक मित्रों ने अभी-अभी जो लघुकथा पढ़े हैं, मेरे (सदानंद पॉल) द्वारा रचित है, जो कि 20 साल से पहले 1995 में प्रकाशित हुई थी। तब जैमिनी अकादेमी, पानीपत (हरियाणा) ने 'अखिल भारतीय लघुकथा-प्रतियोगिता' में इसे पुरस्कृत भी किया था ।

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