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*"कोई मेरी देवकी मौसी के पुत्र 'कृष्णा' की सुधि ले"*

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*"कोई मेरी देवकी मौसी के पुत्र 'कृष्णा' की सुधि ले"* ------------------------------------------------------------- भारत भर और संसार के सनातन धर्मावलंबियों में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म दिवस 'श्री कृष्ण जन्म अष्टमी' के रूप में मनाये जाने की कई तरह की परंपरा है । पुराणों, महाभारत और कई टीकाओं में ऐसा वर्णन है । विज्ञान, साक्ष्य और प्रामाणिक मान्यताओं के तह में जाने पर काल-अवधारणा विषयक विसंगतियाँ हो सकती हैं, परंतु ऐतिहासिक - पात्रों को स्मरणार्थ अवसर की तलाश में जन्म दिवस या अन्य प्रसंगश: उनकी सुधि लेना गलत थोड़े ही है ! कवि जयदेव ने अपनी संस्कृत कविता में भगवान के दस अवतारों में आठवाँ अवतार के रूप में हलधर-कृष्ण को लिखा है , वैसे श्रीकृष्ण आठवीं संतान थे भी । यहाँ कृष्ण के साथ 'हलधर' से तात्पर्य बलराम से है । प्रश्न है, भगवान के आठवाँ अवतार में बलराम और कृष्ण दोनों हैं , क्योंकि त्रेता-प्रसंग में राम के साथ लक्ष्मण की अनिवार्यता किसी से छिपा थोड़े ही है ! राम के जीवन में लक्ष्मण 'बड़े' भाई'से थे और द्वापर-प्रसंग में कृष्ण के बड़े भाई के रूप म

*"सुधन्वा"* (गीति नाट्य)- सदानंद पॉल

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*"सुधन्वा"*(गीति-नाट्य)- सदानंद पॉल *"सुधन्वा"*(गीति-नाट्य)- सदानंद पॉल --------------------------------------------- शंख-लिखित --------------- शंख,  लिखित दो  ऋषि भाई थे,  हंसध्वज  के राज में , थे राजगुरु, राज-पंडित औ' शास्त्र, ज्योतिष, काज में  । वक्ता शंख, संतलेखक लिखित - दोनों थे लिपिबद्धकार, पर मंथरा  -  सी कटु - कर्म, कटु - नारद थे निर्बन्धकार। कथानक ,  चरित्र  -  चित्रण   और   संवाद  के  प्रेमी थे , शैली,  देश,  काल,  उद्देश्य- रूपण, विवाद  के  प्रेमी थे । दुर्बुद्धि  आ  घेरा  गुरु  को ,  आकर सुधन्वा ज़रा विलंब, अवलंब पर राजा ने , कड़ाही तेल की मँगाया अविलंब । डब - डब  करते   तेल ,  बनाते   जलकर आँच -  ताप , मृत्यु - कारज  कि शंख - लिखित  मनतर  साँच - जाप । कठोर  चाम  में  बाहर ,  कि अंदर श्वेत कोमल नारिकेल, परीक्षा लेने को आरद्ध वहाँ , कि गरम है या नहीं - तेल । गंभीर नाद, फल हुआ खंड, लगा कपाल में - से ठोकर , हुआ  चित्त,  लेकर  धरा  पर , संग मरण में - से सोकर । अवतार --------- सर्व   सिद्धांत   व  नियम  का ,  पालन    किया   यीशु  , तू

*"सुधन्वा"* (गीति नाट्य)- सदानंद पॉल

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*"सुधन्वा"* (गीति नाट्य)- सदानंद पॉल ---------------------------------------------- चम्पकपुरी ------------- मिथिलांचल में पाटलिपुत्र-सा, कुशध्वज की रज्जधानी थी , अवतार वैदेही   माता जानकी, कि  स्वयं शक्ति भवानी थी । पुष्प   पाटल  की  सुरभि  में , चंपा   भी  एक   सहेली  थी , कि   मैके - माँ  की  घर  में , दम   खेल  मेल'से  खेली  थी । चम्पक   वन  में  चमचम - सी , नगरी  चम्पकपुरी  बसी थी, राज - दुलारे    गगन - सितारे, चकमक'से   रवि - शशि थी । मंथन  पर  सागर  को  जहाँ ,  अमृत  और  विष देना पड़ा  , नीलकंठी - कल्याणकर - शिव को,विषपान क्यों लेना पड़ा ? चम्पकपुरी  थी  सौम्य - सुन्दर , हा-हा  सत्य कैलाशपुरी थी , राजा  -  प्रजा  के  बीच  समन्वय , समता   न्याय - धुरी थी । हंसध्वज    थे   वीर   राजा ,  पर   धीर  -   गंभीर   नहीं   थे , श्रवण  -  शक्ति   क्षीण   उनकी ,  मंत्री  वाक्  -  पटु सही थे । रीति - प्रीति  की  बात  समर  में ,  रेणु   ही  अणु  बनती  है , धर्म  के  निर्  महाप्राण में ही  , उत्तम परम - अणु  बनती  है । http://rtimessenger.blogspot.in/2016/

*"सुधन्वा"* (गीति-नाट्य)- सदानंद पॉल

*"सुधन्वा"* (गीति-नाट्य)- सदानंद पॉल ---------------------------------------------- कालचक्र ----------- दिन, सप्ताह, मास, वर्ष  तो  प्रथम  सभ्यता  प्रतीक   है , यूरेशिया  या  रोम-रोम  अपभ्रंश , भारतवर्ष  से  दिक् है । चैत्र जहाँ मार्च माह, सम्राट मार्स  वा  मार्च थे युद्ध-देवता , अप्रैल है वैशाख अमोनिया-एपरिट , है प्राक्  शुद्ध देवता । हिंदी - अँग्रेजी  की  साम्यता  में,  विक्रमी  ईस्वी  सन्  है , एटलस-तनुजा-रूप मई है जेठ, तो मैया की तन - मन है । जून  गर्मी  आषाढ़  ईर्ष्या , जूनो  ज़ुपिटर  की  पत्नी  थी , हिज़री  क्या ? मुहम्मद की मक्का से मदीना भी मणि थी । सावन-सुहावना जुलाई माह, जुलियस सीज़र के नाम पर , शेक्सपियर-अभिज्ञान शाकुन्तलम् या बच्चन के काम पर । अगस्त  आगस्ट्स  भादो,  कुंआर  सेप्टेम्बर  सप्तमवर था, अष्टमवर  कार्तिक  अक्टूबर,  अगहन  नाम  नवमवर  था । दशम्   पूस  दशमवर  भाई,  माघ  जेनस बेन जनवरी थी  , मासांत भोज फेबुआ कारण,फागुन बहन की फ़रवरी थी ।                                                                              ...........क्रमशः............

*"सुधन्वा"* (गीति-नाट्य)

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*"सुधन्वा"* (गीति-नाट्य) -- सदानंद पॉल ------------------------------------------------ अश्व ----- कोई गिनती नहीं,पशु में अश्व की,अश्व असत्य में सत्य है, सृष्टि काल-ग्रास में, पृथ्वी पर जीवन, सबके सब मर्त्य है । रथ  में  जुते  जहाँ  अश्व  है, कि सारथिहीन मन चंचल है, राजप्रासाद  की  बात  विदाकर, वन  में ग्राम - अंचल है । अश्वारोही   चमत्कृत,   पामर - मन   जब  वश   में   हो , हस्ती  औ'  वनकेशरी - शक्ति, कि अश्व  जब वश  में हो । शांति - अश्म  में  रस्म  देकर, अश्वमन  जीता  जाता  है , शान्ति-द्वार  से  स्वर्गद्वार  होकर, हरिद्वार खुल जाता है । रूप  अश्व है, गंधहीन  भी, ज्ञानहीन  भी  हो  सकता  है , चक्रवर्ती   बननेवाले   अश्व ,  दूसरे   का   उपभोक्ता  है । मत्स्य,  कच्छप,  शूकर  और  पशु-ढंग नरसिंहावतार है , पशु   है  निश्चित  ही   महान,  ज्ञान - रुपी  दशावतार  है । विशाल   अश्व   हूँह  !  अश्व  -  पीठ   पर   चाबुक   पड़े , वेदाध्ययन   करते -  करते  ,  कि    ज्ञानी   शम्बूक   मरे । महाभारत ------------ अहम्  वृक्ष  का  फल  रहा,  तब भारत आगे 'महा&

"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य)

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"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य) -- सदानंद पॉल ------------------------------------------------ (प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । ) कालचक्र ----------- सृष्टिपूर्व  मैं शब्द  था,  फिर अंड - पिंड -  ब्रह्माण्ड  बना, जनक-जननी,  भ्रातृ-बहना, गुरु-शिष्य   औ' खंड  बना । हूँ काल मैं, शव-चक्र  समान,  सत्य-तत्व,  रवि-ज्ञान भला, प्रकाश-तम, जल-तल, पवन-पल, युद्ध-शांत, विद्या-बला । परम-ईश्वर, सरंग-समता, पूत - गुड़- गूंग आज्ञाकारी बना, देव-दनुज, यक्ष-प्रेत-कीट, मृणाल-खग  मनु उपकारी बना। युग-युग   में  अनलावतार  हो,  जम्बूद्वीप   में  कर्म   बना, मर्म  के  जाति-खंड पार  हो,  कि   कर्तव्य  राष्ट्रधर्म बना । हूँ  संत-पुरुष, अध्यात्म-विज्ञ, तो  पंचपाप  को पूर्ण जला, अकर्म-शर्म, कर्मांध-दर्प, तांडव - नृत्य - कृत्य स्वर्ण गला । हर्ष - उत्कर्ष  हो  सहर्ष  मित्र , अपना  जीवन - संग

*रक्षा-बंधन के सुअवसर पर अवश्य पढ़िए, ये लघुकथा--"नापाक रिश्ता"*

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*रक्षा-बंधन के सुअवसर पर अवश्य पढ़िए, ये लघुकथा--"नापाक रिश्ता"* ------------------------------------------------------------------------------------ *बहन ने धर्मभाई के कलाई पर राखी बाँधी, चन्दन की टीका लगाई, आरती उतारी और महिमा-मंडित, प्रेम-पुष्पित 'कर' से मिठाई खिलाई ।                                  न परिचय, न पाती...। अनाथ को बहन ने धर्मभाई बनाया था , अपनी छत्रच्छाया में उन्हें भरकोशिश पढ़ाया-लिखाया और 'चार्टर्ड - अकाउंटेंट' जैसे 'जॉब' दिलवायी------- आमदनी की अम्बार सजी । प्रथम अवकाश में धर्मभाई सावन पूर्णिमा से एक दिन पूर्व बहन के पास आया था ।                      ××××××××××××××××××××××× थी तो पूर्णिमा की रात...... और रात में.................... कमरे में अँधेरे होने का फायदा उठाया -------- "म.......मैं........मैं.........कंचन हूँ, रमण ! .....तुम्हारी दीदी....कहीं बहन के साथ....... ऐसी नीच हरकतें.................।"                                     तबतक दरिंदे भाई ने माँ-तुल्य धर्मबहन की चोली और चुनरी को उनकी देह से अलग कर द

*"बिहार, झारखण्ड और नेपाल के संत-शिरोमणि : महर्षि मेंहीं"*

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*"बिहार, झारखण्ड और नेपाल के संत-शिरोमणि : महर्षि मेंहीं"* -------------------------------------------------------------------------- बिहार के मधेपुरा जिले में जन्म, पूर्णिया जिला स्कूल में पढ़ाई, कटिहार जिला  (नवाबगंज, मनिहारी) कर्मभूमि, कुप्पाघाट (भागलपुर) में ज्ञान-प्राप्ति वाले संत  महर्षि मेंहीं को महात्मा बुद्ध के अवतार माने जाते हैं । सौ साल पाकर आठ जून 1986 को महापरिनिर्वाण पाये। इनकी उल्लेखनीय आध्यात्मिक-पुस्तकों में 'सत्संग-योग' की चर्चा चहुँओर है, यह चार भागों में है । इसे भौतिकवादी व्यक्तियों को भी पढ़ना चाहिए । मैंने भी चौथे भाग की समीक्षा किया है । ऐसे संत-शिरोमणि के बारे में देश-विदेश के कई विद्वानों ने चर्चा किये हैं, यथा:-- 1.श्री मेंहीं जी संतमत के वरिष्ठ साधक हैं--- महात्मा गांधी । 2.महर्षि मेंहीं शान्ति की स्वयं परिभाषा है--- डॉ. राजेन्द्र प्रसाद । 3.पूज्य मेंहीं दास जी एक आदर्श संत हैं--- डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् । 4.महर्षि मेंहीं परमहंस जी विलक्षण संत होते हुए भी एक प्रसिद्ध साहित्यकार हैं---आचार्य शिवपूजन सहाय ।

'भारत भाग्य विधाता' 'अधिनायक' है या 'जन-गण-मन' --कोई बताएँगे ?

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'भारत भाग्य विधाता' 'अधिनायक' है या 'जन-गण-मन' --कोई बताएँगे ? ---------------------------------------------------------------------------------- एक कयास है-- भारत का 'राष्ट्रगान' बांग्ला से अनूदित हिंदी भाषा में है । सुनी-सुनाई बात यह भी है कि कोई कहते-- इस रचना को सुभाष चंद्र बोस ने हिंदी में अनुवाद किया था, किन्तु कोई कहते-- इस रचना को अरविंद घोष ने हिंदी में अनुवाद किया था । विदित हो, 'बोस' और 'घोष'-- दोनों बंगाली 'सरनेम' हैं । सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने 'राष्ट्रगान' से सम्बंधित जो मुझे प्रतियाँ उपलब्ध कराए गए हैं, वो प्रतियाँ उस पुस्तक से है, जो कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ( रबीन्द्रनाथ टैगोर !) के निधन के बाद किसी लेखक की छपी पुस्तक की द्वितीय संस्करण में संकलित रचना से है । कहा जाता है, 'भारत भाग्य विधाता' शीर्षक से ठाकुर संपादित बांग्ला पत्रिका 'तत्वबोधिनी' में 1913 में प्रकाशित हुई थी , परंतु उक्त कविता-प्रकाशित पत्रिका की प्रति भारत सरकार के पास नहीं है और न ही सम्

"Ph.D. प्रमाण-पत्र पर धारक को 'डॉ.' लिखा जाने का उल्लेख नहीं"

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"Ph.D. प्रमाण-पत्र पर धारक को 'डॉ.' लिखा जाने का उल्लेख नहीं" ------------------------------------------------------------------------------- भारत के ''विश्वविद्यालय अनुदान आयोग' (U.G.C.) , बहादुर शाह ज़फर मार्ग, नई दिल्ली-- 110002" को मैंने (सदानंद पॉल) दिनांक-01 अप्रैल 2016 के सम्प्रति सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI एक्ट) के अंतर्गत सूचनावेदन (प्रपत्र-'क') रजिष्ट्री डाक से भेजकर '2' सूचना की मांग किया:-- सूचना-1- ---------- मैं (SADANAND PAUL) qualified the UGC-NET for eligibility for Lectureship....validity of the certificate is forever लिए हूँ । मैं अपने नाम के साथ 'व्याख्याता' लिखने के लिए मान्य हूँ । इस सम्बन्ध में यह भी सूचना देंगे कि नाम (धारक) के उपसर्ग-जगह पर 'प्रो.' (Prof.)  लिख सकता हूँ, बताएँगे । सूचना-2- ----------

"स्वतंत्रता दिवस में 'अवकाश' है, फिर क्यों सरकारी कार्यालय आना है?"

भारत सरकार सहित सभी राज्य सरकारों के सरकारी कर्मियों के लिए सम्बंधित विभागों द्वारा प्रति वर्ष जो 'अवकाश कैलेण्डर' जारी किये जाते हैं, उनमें 26 जनवरी ( गणतंत्र दिवस ) और 15 अगस्त ( स्वतंत्रता दिवस ) को भी अवकाश होने का जिक्र रहता है । सरकारों द्वारा इन अवकाशों की गिनती तो कर लिया जाता है कि हम कर्मियों को इतने दिनों तक विश्राम की मुहैया कराते हैं, परंतु इन दिवसों को कार्यालय में अनुपस्थित कर्मियों को 'बॉस' के द्वारा  'so causes' पूछते हुए जवाब की अपेक्षा किये बगैर तत्काल प्रभाव से उनका वेतन रोक दिया जाता है । यह कैसा अवकाश है, जिसे देकर भी अनुपस्थिति पर जीवनयापी वेतन से वंचित कर दिया जाता है ? यह कैसी स्वतंत्रता है, जिसके दिवस में कर्मी न स्वतंत्र रह सकता है, न ही गणतंत्र !