*"सुधन्वा"* (गीति नाट्य)- सदानंद पॉल
*"सुधन्वा"* (गीति नाट्य)- सदानंद पॉल
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चम्पकपुरी
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मिथिलांचल में पाटलिपुत्र-सा, कुशध्वज की रज्जधानी थी ,
अवतार वैदेही माता जानकी, कि स्वयं शक्ति भवानी थी ।
पुष्प पाटल की सुरभि में , चंपा भी एक सहेली थी ,
कि मैके - माँ की घर में , दम खेल मेल'से खेली थी ।
चम्पक वन में चमचम - सी , नगरी चम्पकपुरी बसी थी,
राज - दुलारे गगन - सितारे, चकमक'से रवि - शशि थी ।
मंथन पर सागर को जहाँ , अमृत और विष देना पड़ा ,
नीलकंठी - कल्याणकर - शिव को,विषपान क्यों लेना पड़ा ?
चम्पकपुरी थी सौम्य - सुन्दर , हा-हा सत्य कैलाशपुरी थी ,
राजा - प्रजा के बीच समन्वय , समता न्याय - धुरी थी ।
हंसध्वज थे वीर राजा , पर धीर - गंभीर नहीं थे ,
श्रवण - शक्ति क्षीण उनकी , मंत्री वाक् - पटु सही थे ।
रीति - प्रीति की बात समर में , रेणु ही अणु बनती है ,
धर्म के निर् महाप्राण में ही , उत्तम परम - अणु बनती है ।
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चम्पकपुरी
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मिथिलांचल में पाटलिपुत्र-सा, कुशध्वज की रज्जधानी थी ,
अवतार वैदेही माता जानकी, कि स्वयं शक्ति भवानी थी ।
पुष्प पाटल की सुरभि में , चंपा भी एक सहेली थी ,
कि मैके - माँ की घर में , दम खेल मेल'से खेली थी ।
चम्पक वन में चमचम - सी , नगरी चम्पकपुरी बसी थी,
राज - दुलारे गगन - सितारे, चकमक'से रवि - शशि थी ।
मंथन पर सागर को जहाँ , अमृत और विष देना पड़ा ,
नीलकंठी - कल्याणकर - शिव को,विषपान क्यों लेना पड़ा ?
चम्पकपुरी थी सौम्य - सुन्दर , हा-हा सत्य कैलाशपुरी थी ,
राजा - प्रजा के बीच समन्वय , समता न्याय - धुरी थी ।
हंसध्वज थे वीर राजा , पर धीर - गंभीर नहीं थे ,
श्रवण - शक्ति क्षीण उनकी , मंत्री वाक् - पटु सही थे ।
रीति - प्रीति की बात समर में , रेणु ही अणु बनती है ,
धर्म के निर् महाप्राण में ही , उत्तम परम - अणु बनती है ।
राजा हंसध्वज
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समाचार यहाँ , घोड़ा यज्ञ का , नगर - प्रवेश किया है ,
पकड़ो - पकड़ो का आदेश , हंसध्वज महेश किया है ।
स-अक्षर के साक्षर पुत्र, पंच पुत्र थे पांडव समान ,
एक - एक बल - आज्ञाशाली, वे किशोरवय के जवान ।
सुगल ज्येष्ठ पुत्र थे ताकतवर , ब्रह्मास्त्र वह पाया था ,
दिशा उत्तर का रक्षा - भार , संभालने वह आया था ।
मंझले पुत्र सुरथ ने , रथ - कवचास्त्र पाया था ,
दक्षिण दिशा का रक्षा - भार , हाँ, वह संभालने आया था ।
सम नाम था, संझले का , की सर्वास्त्र वह पाया था ,
रक्षक बने वो पूर्व दिशा के , वे ही संभालने आया था ।
चौथे पुत्र सुदर्शन ने , मोह दर्शन के मोहास्त्र पाया था ,
पश्चिम दिशा का रक्षा - भार , संभालने को आया था ।
औ' कनिष्ठ थे सुधन्वा , घोड़ा उसे ही पकड़ना था ,
किशोर थे विवाहित वे, हा - हा , युद्ध उसे ही लड़ना था ।
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समाचार यहाँ , घोड़ा यज्ञ का , नगर - प्रवेश किया है ,
पकड़ो - पकड़ो का आदेश , हंसध्वज महेश किया है ।
स-अक्षर के साक्षर पुत्र, पंच पुत्र थे पांडव समान ,
एक - एक बल - आज्ञाशाली, वे किशोरवय के जवान ।
सुगल ज्येष्ठ पुत्र थे ताकतवर , ब्रह्मास्त्र वह पाया था ,
दिशा उत्तर का रक्षा - भार , संभालने वह आया था ।
मंझले पुत्र सुरथ ने , रथ - कवचास्त्र पाया था ,
दक्षिण दिशा का रक्षा - भार , हाँ, वह संभालने आया था ।
सम नाम था, संझले का , की सर्वास्त्र वह पाया था ,
रक्षक बने वो पूर्व दिशा के , वे ही संभालने आया था ।
चौथे पुत्र सुदर्शन ने , मोह दर्शन के मोहास्त्र पाया था ,
पश्चिम दिशा का रक्षा - भार , संभालने को आया था ।
औ' कनिष्ठ थे सुधन्वा , घोड़ा उसे ही पकड़ना था ,
किशोर थे विवाहित वे, हा - हा , युद्ध उसे ही लड़ना था ।
................क्रमशः................
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