"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य)
"*सुधन्वा*" (गीति नाट्य) -- सदानंद पॉल
------------------------------------------------
(प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । )
------------------------------------------------
(प्रस्तुत गीति-नाट्य में 12 पात्र 12 आयामों का प्रकटीकरण है, यथा:- कालचक्र, अश्वमेध-यज्ञ, अश्व, महाभारत, काल, चम्पकपुरी, राजा हंसध्वज, शंख-लिखित, अवतार, भारतवर्ष, कृष्णार्जुन और सुधन्वा । ध्यातव्य है, 'सुधन्वा' ऐतिहासिक नायक थे । )
कालचक्र
-----------
सृष्टिपूर्व मैं शब्द था, फिर अंड - पिंड - ब्रह्माण्ड बना,
जनक-जननी, भ्रातृ-बहना, गुरु-शिष्य औ' खंड बना ।
हूँ काल मैं, शव-चक्र समान, सत्य-तत्व, रवि-ज्ञान भला,
प्रकाश-तम, जल-तल, पवन-पल, युद्ध-शांत, विद्या-बला ।
परम-ईश्वर, सरंग-समता, पूत - गुड़- गूंग आज्ञाकारी बना,
देव-दनुज, यक्ष-प्रेत-कीट, मृणाल-खग मनु उपकारी बना।
युग-युग में अनलावतार हो, जम्बूद्वीप में कर्म बना,
मर्म के जाति-खंड पार हो, कि कर्तव्य राष्ट्रधर्म बना ।
हूँ संत-पुरुष, अध्यात्म-विज्ञ, तो पंचपाप को पूर्ण जला,
अकर्म-शर्म, कर्मांध-दर्प, तांडव - नृत्य - कृत्य स्वर्ण गला ।
हर्ष - उत्कर्ष हो सहर्ष मित्र , अपना जीवन - संग बना ,
त्याग - सेवा, संतोष - उपासना का, क्लीव - अंग बना ।
रस - अपभ्रंश में, गीति - नाट्य - कवि, ऊँ - भक्ति बना ,
भक्ति की अभिव्यक्ति से , मुक्ति की शक्ति बना ।
-----------
सृष्टिपूर्व मैं शब्द था, फिर अंड - पिंड - ब्रह्माण्ड बना,
जनक-जननी, भ्रातृ-बहना, गुरु-शिष्य औ' खंड बना ।
हूँ काल मैं, शव-चक्र समान, सत्य-तत्व, रवि-ज्ञान भला,
प्रकाश-तम, जल-तल, पवन-पल, युद्ध-शांत, विद्या-बला ।
परम-ईश्वर, सरंग-समता, पूत - गुड़- गूंग आज्ञाकारी बना,
देव-दनुज, यक्ष-प्रेत-कीट, मृणाल-खग मनु उपकारी बना।
युग-युग में अनलावतार हो, जम्बूद्वीप में कर्म बना,
मर्म के जाति-खंड पार हो, कि कर्तव्य राष्ट्रधर्म बना ।
हूँ संत-पुरुष, अध्यात्म-विज्ञ, तो पंचपाप को पूर्ण जला,
अकर्म-शर्म, कर्मांध-दर्प, तांडव - नृत्य - कृत्य स्वर्ण गला ।
हर्ष - उत्कर्ष हो सहर्ष मित्र , अपना जीवन - संग बना ,
त्याग - सेवा, संतोष - उपासना का, क्लीव - अंग बना ।
रस - अपभ्रंश में, गीति - नाट्य - कवि, ऊँ - भक्ति बना ,
भक्ति की अभिव्यक्ति से , मुक्ति की शक्ति बना ।
अश्वमेध-यज्ञ
---------------
---------------
http://rtimessenger.blogspot.in/2016/08/blog-post_13.html
केवल घोड़ा छोड़ कहलाना , चक्रवर्ती, अश्वमेध नहीं ,
लौट अश्व , उस यज्ञस्थल पर, यह भी अश्वमेध नहीं ।
होता अश्वमेध बहु - अश्व - मुक्ति का, यज्ञ महान ,
होमादि में प्रवाह पाप कर , बन पांडव अज्ञ - महान ।
त्रेता में रामचंद्र ने किया, अश्वमेध का दूत - गमन ,
अश्व - असुर - पशुबुद्धि, पान - मद्य औ' द्यूत - जलन ।
जहाँ राम ने माया सीता की, स्वर्ण - मूरत बनाया था ,
द्वापरा युद्धिष्ठिर तहाँ पर्वत से , रतन-जवाहरात लाया था ।
ऋचाओं के मन्त्र - सिद्धि से , आदि में यश-गान हुआ ,
यंत्र - तंत्र के परा प्रणाली से , उषाकाल का भान हुआ ।
विजय जहां विशेष है, जय की महिमा वहाँ अपार ,
है हवनकुण्ड में अक्षत की , मंडित गरिमा - संसार ।
हो आकाशी पुष्पवर्षा , पर स्वहितार्थ जो, अश्वमेध नहीं,
क्षमा ,दया , दीन - रक्षा - पूजा, जीव - सेवा , अश्वमेध सही।
केवल घोड़ा छोड़ कहलाना , चक्रवर्ती, अश्वमेध नहीं ,
लौट अश्व , उस यज्ञस्थल पर, यह भी अश्वमेध नहीं ।
होता अश्वमेध बहु - अश्व - मुक्ति का, यज्ञ महान ,
होमादि में प्रवाह पाप कर , बन पांडव अज्ञ - महान ।
त्रेता में रामचंद्र ने किया, अश्वमेध का दूत - गमन ,
अश्व - असुर - पशुबुद्धि, पान - मद्य औ' द्यूत - जलन ।
जहाँ राम ने माया सीता की, स्वर्ण - मूरत बनाया था ,
द्वापरा युद्धिष्ठिर तहाँ पर्वत से , रतन-जवाहरात लाया था ।
ऋचाओं के मन्त्र - सिद्धि से , आदि में यश-गान हुआ ,
यंत्र - तंत्र के परा प्रणाली से , उषाकाल का भान हुआ ।
विजय जहां विशेष है, जय की महिमा वहाँ अपार ,
है हवनकुण्ड में अक्षत की , मंडित गरिमा - संसार ।
हो आकाशी पुष्पवर्षा , पर स्वहितार्थ जो, अश्वमेध नहीं,
क्षमा ,दया , दीन - रक्षा - पूजा, जीव - सेवा , अश्वमेध सही।
क्रमशः........
badhiya bhaiya.
जवाब देंहटाएं