'भारत भाग्य विधाता' 'अधिनायक' है या 'जन-गण-मन' --कोई बताएँगे ?
'भारत भाग्य विधाता' 'अधिनायक' है या 'जन-गण-मन' --कोई बताएँगे ?
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एक कयास है-- भारत का 'राष्ट्रगान' बांग्ला से अनूदित हिंदी भाषा में है । सुनी-सुनाई बात यह भी है कि कोई कहते-- इस रचना को सुभाष चंद्र बोस ने हिंदी में अनुवाद किया था, किन्तु कोई कहते-- इस रचना को अरविंद घोष ने हिंदी में अनुवाद किया था । विदित हो, 'बोस' और 'घोष'-- दोनों बंगाली 'सरनेम' हैं । सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने 'राष्ट्रगान' से सम्बंधित जो मुझे प्रतियाँ उपलब्ध कराए गए हैं, वो प्रतियाँ उस पुस्तक से है, जो कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ( रबीन्द्रनाथ टैगोर !) के निधन के बाद किसी लेखक की छपी पुस्तक की द्वितीय संस्करण में संकलित रचना से है । कहा जाता है, 'भारत भाग्य विधाता' शीर्षक से ठाकुर संपादित बांग्ला पत्रिका 'तत्वबोधिनी' में 1913 में प्रकाशित हुई थी , परंतु उक्त कविता-प्रकाशित पत्रिका की प्रति भारत सरकार के पास नहीं है और न ही सम्बंधित विभाग को जन सूचना अधिकारी के द्वारा एतदर्थ कहीं अंतरित ही किया गया है । भाषाई मानदंड के लिहाज से कभी-कभी यह संशय भी लगता है कि यह ठाकुर की रचना है या नहीं ! 'भारत भाग्य विधाता' का लेखन / प्रकाशन 1913 हो या उनसे पहले कभी भी -- संशय-गाथा बरक़रार है !
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एक कयास है-- भारत का 'राष्ट्रगान' बांग्ला से अनूदित हिंदी भाषा में है । सुनी-सुनाई बात यह भी है कि कोई कहते-- इस रचना को सुभाष चंद्र बोस ने हिंदी में अनुवाद किया था, किन्तु कोई कहते-- इस रचना को अरविंद घोष ने हिंदी में अनुवाद किया था । विदित हो, 'बोस' और 'घोष'-- दोनों बंगाली 'सरनेम' हैं । सूचना का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने 'राष्ट्रगान' से सम्बंधित जो मुझे प्रतियाँ उपलब्ध कराए गए हैं, वो प्रतियाँ उस पुस्तक से है, जो कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ( रबीन्द्रनाथ टैगोर !) के निधन के बाद किसी लेखक की छपी पुस्तक की द्वितीय संस्करण में संकलित रचना से है । कहा जाता है, 'भारत भाग्य विधाता' शीर्षक से ठाकुर संपादित बांग्ला पत्रिका 'तत्वबोधिनी' में 1913 में प्रकाशित हुई थी , परंतु उक्त कविता-प्रकाशित पत्रिका की प्रति भारत सरकार के पास नहीं है और न ही सम्बंधित विभाग को जन सूचना अधिकारी के द्वारा एतदर्थ कहीं अंतरित ही किया गया है । भाषाई मानदंड के लिहाज से कभी-कभी यह संशय भी लगता है कि यह ठाकुर की रचना है या नहीं ! 'भारत भाग्य विधाता' का लेखन / प्रकाशन 1913 हो या उनसे पहले कभी भी -- संशय-गाथा बरक़रार है !
यह रचना - लिखा समय 'गुजरात' नाम से कोई प्रांत नहीं था, फिर 'मराठा' राज्य नहीं, अपितु यह शिवाजी-समर्थित/समर्पित समुदाय था, जो कि मराठवाड़ा हो सकता है या बम्बई होता और 'गुजरात + बम्बई' मिलकर 'सौराष्ट्र' था । इसलिए रचना-काल का उक्त समय यथोचित नहीं जान पड़ता ! 'उत्कल' यानी उड़ीसा भी तब बंगाल में था, उड़ीसा 1936 में बिहार से अलग हुआ है , संयुक्त बिहार (उड़ीसा सहित) भी 1912 में बंगाल से अलग हुआ था । इसतरह से इस रचना में उत्कल का जिक्र होना संशय उत्पन्न करता है ! यदि जिक्र होना ही था , तो 'बिहार' का होता ! वैसे भी 'उत्कल' बांगला शब्द नहीं , संस्कृत शब्द से ज्यादा करीब हैं , अन्यथा रचना-काल गलत उद्धृत है । जिसतरह से 'सिंध' को 'सिंधु' किया गया है, उसीतरह से अन्य शब्द पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए । इसीतरह 'द्रविड़' शब्द से अश्वेत-संस्कृतिबोध लिए समुदाय है, क्योंकि उन दिनों ऐसी ही मंशा लिए प्रतिबद्धता थी । यह कैसी रचना है, प्रांतों के जिक्र होते-होते समुदाय में घुस गए कवि ! रचना का ऐसा विग्रह अज़ीब है ! रचना में 'हिमाचल' अगर हिमालय है, तो 'जलधि' व महासागर में Indian Ocean (हिन्द महासागर) का नाम का उल्लेख नहीं है । खैर, इसे मान भी ले तो रचना में 'तव' , 'गाहे', 'जय हे' जैसे- शब्द या शब्द-विन्यास हिंदी के नहीं हैं । कुलमिलाकर यह रचना हिंदी भाषा लिए नहीं हैं ।
http://rtimessage.blogspot.in/2016/08/blog-post_13.html
एक तरफ हम 'गीता' को आदर्श मानते हैं । कर्म को सबका गूढ़ मानते हैं , दूसरी तरफ उक्त रचना में 'भाग्य' शब्द को क्या कहा जाय ? 'विधाता' 'अधिनायक' के सापेक्ष है, तो इसका मतलब 'ईश्वर' नहीं, अपितु 'डिक्टेटर' से है । 'जन गण मन' की बात सोचा जाना, 'विधाता ' और 'अधिनायक' से परे की बात है , विविधा भाषा भी मिश्री घोलता है !बावजूद 'राष्ट्रगान' के प्रति पूर्ण आस्था है और 52 सेकंड में समाये उनकी धुन तो देश के प्रति जोश में भर देता है । ......और बावजूद इनकी रचनाकार जो भी हो ! 'ठाकुर' या 'टैगोर' या ...................????????????????????????????
एक तरफ हम 'गीता' को आदर्श मानते हैं । कर्म को सबका गूढ़ मानते हैं , दूसरी तरफ उक्त रचना में 'भाग्य' शब्द को क्या कहा जाय ? 'विधाता' 'अधिनायक' के सापेक्ष है, तो इसका मतलब 'ईश्वर' नहीं, अपितु 'डिक्टेटर' से है । 'जन गण मन' की बात सोचा जाना, 'विधाता ' और 'अधिनायक' से परे की बात है , विविधा भाषा भी मिश्री घोलता है !बावजूद 'राष्ट्रगान' के प्रति पूर्ण आस्था है और 52 सेकंड में समाये उनकी धुन तो देश के प्रति जोश में भर देता है । ......और बावजूद इनकी रचनाकार जो भी हो ! 'ठाकुर' या 'टैगोर' या ...................????????????????????????????
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