*"सोनिया मैय्या सुधरी, ये राहुल भैया को क्या हो गया !"*

*"सोनिया मैय्या सुधरी, ये राहुल भैया को क्या हो गया !"*
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बकौल, सोनिया गांधी--- "... मौत के सौदागर..." । कोर्ट की कड़ाई करने पर सोनिया ने ये बात समझी कि आखिर वे क्या कह रही हैं ! चलिए, सोनिया गरीब घर में जन्मी थी, तथ्य समझ गयी ।
ये राहुल बाबा , जिनके बाप प्रधानमन्त्री रहे, दादी प्रधानमन्त्री थी और दादी के बाप भी प्रधानमन्त्री थे । दादी के दादा की संपत्ति और वकालत से अर्जित आमदनी इतनी थी कि उस वक्त पूरे भारत को 6 माह बिठाकर खिला सकते थे (लेकिन ऐसा कभी नहीं किये), उस परिवार के राहुल बाबा , जो अपने इस परिवार के रोमांटिक उम्र से उलट अबतक कुंवारे हैं , जिनके बाप और दादी की हत्या कर दिए गए और भारतवर्ष के लिए शहीद हो गए वे दोनों, उस राहुल गांधी को अत्यंत गरीब घर से निकले प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के लिए ऐसे वाक्यांश नहीं बोलने थे---"..... शहीदों के खूनों की दलाली खानेवाले....." शर्म करो जरा राहुल ।
पिछले दिनों एम. काटजू के बयान पर (जो सच में देशद्रोह बयान था) हो-हल्ला मचानेवाले वे राजनेता आज कहाँ गए ? राहुल गांधी के बयान कहीं से भी राष्ट्रभक्ति-भावना लिए बयान नहीं लगे । किसी को भी विचार - अभिव्यक्ति की आज़ादी देश के बिनाह (प्रश्न-प्रतिप्रश्न ) पर नहीं मिलने चाहिए । देश और देशभक्ति सर्वोपरि है ।
टिस्को के वरिष्ठ अधिकारी के इनकम टैक्स कमिश्नर बेटे केजरीवाल 'आम आदमी' कैसे हो सकते हैं । कितने गरीबों के केस लड़ पाये हैं , ये पॉश वकील सिब्बल ! ... या कांग्रेसी गूगल दिग्गी राजा । क्या हमें (बहुत माहों बाद अच्छे वचन देनेवाले ) लालू जी की ये बातें स्मरण नहीं रखने चाहिए --" गरीब परिवार से गए सीमा की रक्षा करते हमारे सैनिक के शहीद होने पर किसी पार्टी और लोगों को राजनीति नहीं करने चाहिए । सैनिकों के किसी भी कृत्य पर श्रद्धा और विश्वास रखने चाहिए , क्योंकि बॉर्डर पर सैनिक लड़ते हैं , किसी पार्टी के कार्यकर्त्ता नहीं ।" (भावानुवाद) ।
दुनिया के कोई देश उस देश के धर्म से भी ऊपर है , देश के प्रति अंधभक्ति किसी भी दृष्टिकोण से गलत नहीं है । कश्मीर से कन्याकुमारी, फिर कच्छ से कामरूप , अरुणाचल तक भारत एक है । हिन्दू, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, ईसाई, पारसी, जैन इत्यादि धर्मावलम्बी इस देश के कतरे-कतरे से जुड़े हैं । जब देश की बात हो , पंडित और मौलाना भी शंख और अज़ान को एकसाथ स्वरबद्ध कर बैठते हैं । हमें आज़ादीपूर्व के माहौल की देशभक्ति अब भी गृहीत रखने चाहिए ।
कांग्रेस और बीजेपी और आरजेडी, सपा और बसपा, डीएमके और अन्नाद्रमुक सहित ओवेसी और तोगड़िया, ममता बेनर्जी और सर्वानंद सोनोवाल, अमित शाह और नीतीश कुमार , कश्मीरियत और जम्हूरियत इत्यादि को एक 'माला' में गूंथ और आपसी वैमनस्य भूल 'भारत माता' को पहना देनी चाहिए । क्या उपन्यास 'आनद मठ' आज़ादी के बाद छपा है ? क्या इसे किसी बीजेपी वाले ने छाप हैं ? तो फिर क्यों न हम एकस्वर से बोल उठे-- 'वंदे  मातरम्' ।
राष्ट्रीय पुरस्कृत फ़िल्म अभिनेता अजय देवगन ने करोड़ों की 'लॉस' के बावज़ूद भी कहा है-- 'मेरा फ़िल्म पाकिस्तान में न दिखाया जाय, न सही ! मैं पाकिस्तानी कलाकारों के साथ काम का बॉयकाट करूँगा ।' यदि पाकिस्तानी कलाकारों को अपने देश के प्रति मोहब्बत है, तो हमें अपने देश के प्रति भी किसी प्रकार की शक-शुबहेवाली फुसफुसाहट नहीं करने चाहिए, अपितु मोहब्बतें करनी चाहिए । दोनों देशों में सभी प्रकार के धर्म हैं , फिर हम भारतीयों में ही देशभक्ति के प्रति इतने तकरार क्यों हो ?
भारतीय मीडिया को मिली इतनी 'थाती स्वतन्त्रता' को हम कमजोरी मत बनाये । चीन से कितनी खबरें बाहर आ पाती हैं, सिर्फ आपदाओं को छोड़कर । हमें भी अपनी गोपनीयता शेयर नहीं करने चाहिए । राहुल जी, भारत देश एक इलेक्शन नहीं है कि जो हो सो बोलो , सैनिकों की शहादत को चुटकुला मत बनाओ । तभी तो कहा गया है कि जन्मजात प्रतिभा का नाम है-- देशभक्ति ।

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