*"31 अक्टूबर : आह्लादसारी और प्रलयकारी तिथि का मिश्रण"*

"31 अक्टूबर : आह्लादसारी और प्रलयकारी तिथि का मिश्रण"
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वर्ष 1875 का 31 अक्टूबर को वल्लभ भाई पटेल का जन्म हुआ, गाँधीजी के चंपारण कृषक सत्याग्रह के प्रसंगश: बारदोली में कृषक सत्याग्रह का नेतृत्व पटेल ने किया था । चूंकि इस आंदोलन में महिला कृषकों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा ली थी और पटेल के करिश्माई नेतृत्व ने इन महिलाओं को काफी प्रभावित की । महिला कृषकों ने उन्हें तब से 'सरदार' कहना शुरू कर दी । कालान्तर में यह शब्द नामोपसर्ग में लगकर सरदार वल्लभ भाई पटेल के रूप में संसारख्यात् हो गए । भारत को आज़ादी मिळते ही देश ने इसे अपना पहला गृह मंत्री बनाया और अपने व्यक्तित्व संग कृतित्व के बूते सप्ताह से कम दिनों के अंदर ही देश ने उन्हें उप-प्रधानमंत्री भी बना दिया । तब भारत में सैकड़ों की संख्या में छोटे-छोटे देशी राजे-रजवाड़े का बिखराव, बड़े रियासतों में हैदराबाद के निज़ाम, ज़ूनागढ़ रियासत, कश्मीर के महाराजा इत्यादि के भारत के प्रति पूर्ण समर्पण का अभाव से सरदार पटेल को लगा .... अंग्रेजों ने 'फूट' डालने का जो मन्त्र-जाप किया था, वो अब भी जारी है । सरदार की सरदाई ने कड़ाई से पालन किया और कश्मीर को छोड़कर तब के ज्ञात हिस्से भारत के एकता के सूत्र में बँधे, फिर इस सरदार का उपनाम 'लौह-पुरुष' हो गया। कालान्तर में कश्मीर,गोवा, सिक्किम इत्यादि रियासत अथवा प्रांत भी भारत के क्षेत्रफल के हिस्से बने , जो कि सरदार पटेल के ही दूरदर्शिता के प्रमाण हैं और भारत सरकार इसलिए अपने विरोधियों के लिए भी प्रातःस्मरणीय रहे ऐसे भारतीय लौहे के जन्मदिवस के सुअवसर पर 'राष्ट्रीय एकता दिवस' के रूप में मनाते हैं । ऐसे लौह-शख्सियत को मेरा भी सादर नमन् !                                                       वर्ष 1984 का 31 अक्टूबर को पद पर रहती हुई प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी 'शहीद' हो गयी थी । इस दिन उनके स्वयं के अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दिए । इसके कारणों में तथ्य या कथ्य जो हो, परंतु किसी भी देश के प्रधानमंत्री की हत्या उनके स्वयं के अंगरक्षकों द्वारा ही हो जाना अक्षम्य विश्वासघात है । इस हत्या के बाद देशभर में जिसतरह से सिख-धर्मावलंबियों के साथ मर्मान्तक घटना घटित किये गए , यह संत्रास और पीड़ादायक था, फ़ख़्त इस बिनाह पर कि हत्यारे अंगरक्षक सिख-धर्मावलंबी थे ! यह जानते हुए भी कि हत्या सहित आततायी कार्य किसी भी धर्म के उत्सवी चेहरे नहीं हैं । पिता पं. नेहरू के प्रधानमन्त्री पद पर निधन के तुरंत बाद उनकी दुहिता 'प्रियदर्शिनी इंदू ' अगर प्रधानमन्त्री बनती, तो कोई और बात थी , किन्तु यहां इंदु उर्फ़ इंदिरा गाँधी 2 वर्ष बाद व शास्त्री जी के निधन के बाद ही प्रधानमन्त्री बनी । वर्ष 1971 में पाकिस्तान से टक्कर लेकर लाहौर तक पहुंची भारतीय सेना के साथ-साथ बांग्ला देश की आज़ादी इंदिरा गाँधी के बूते मिली । तब एक स्लोगन चली - 'India is Indira & Indira is India'. ... और इंदिरा गाँधी को भारतीयों ने 'लौह महिला' नामार्थ विभूषित किया । परंतु 1975 के आपातकाल, जिनमें विरोधियों को जेल में डालने और प्रेस सेंसरशिप आदि कृत्य से इस प्रियदर्शिनी की सनकी व हिटलरी अक़्स भारतीयों के सामने आई । पुत्र संजय गाँधी की कथित डिक्टेटरी को लिए by forcely  'नसबंदी' आयोजन आग में घी का काम किया, फिर 1977 के लोक सभा चुनाव में देश ने उन्हें 'हार' का सबक दिए । वर्ष 1980 में संजय गाँधी की मौत ने उन्हें तोड़ दिया, विहितार्थ पुनः प्रधानमन्त्री बनी .............. और फिर कार्यकाल में हत्या ... 'लौह महिला' की हत्या... , फिर भारत ने आजतक किसी और 'लौह महिला' को दे नहीं पाये हैं । ऐसी लौह-शख्सियत को मेरा भी सादर स्मरण !
दोनों 'भारत रत्न' को सादर सुमन, सादर प्रणाम !!

                                                 


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