"भारत सरकार ने मेरा सुझाव मानी:अखबारी कागज़ पर नाश्ते की मनाही हो"
"भारत सरकार ने मेरा सुझाव मानी:अखबारी कागज़ पर नाश्ते की मनाही हो"
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मैंने गृह मंत्रालय, भारत सरकार, नॉर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली को प्रपत्र 'क' (आर. टी.आई. एक्ट अंतर्गत) दि.08.12.2014 को पाँच सूचनाओं की मांग के साथ प्रेषित किया था, जिनमें "सूचना संख्या-4:-चौक-चौराहे में नाश्ते की दुकान पर नाश्ता 'अखबार' (अखबारी कागज़) पर दिया जाता है, जिनकी स्याही से 'बवासीर' (रोग आदि) होते हैं, इसपर रोक संबंधी सूचना देंगे"---- हेतु गृह मंत्रालय के शुल्क प्राप्ति रसीद सं. 32378/दि.15.12.2014 प्राप्त हुई थी ।
किन्तु इस मांग पर तब समयावधि में सूचना प्राप्त नहीं होने पर दि.13.01.'15 को माननीय मंत्रालय के प्रथम अपीलीय प्राधिकारी को 'प्रथम अपील' किया, तब जन सूचना अधिकारी -सह- उप सचिव श्री वी.के.राजन के पत्रांक- A.43020/01/2014-RTI/ दि.30.12.2014 की प्राप्ति 13.01.2015 के बाद होती है ।
खैर, संदर्भित सूचना सं.4 के लिए जवाब यह आया--"It is stated that the information sought reg. point No.4 of the RTI application is not available with/ compiled by any Department/ Division of the Ministry of Home Affairs." इसे और आगे बढ़ाते हुए श्री वी.के.राजन के दि.16.02.2015 के पत्र-- "However, in case of any grievance in this regard, you may take up the matter with the Central Information Commission, New Delhi by way of a 2nd Appeal."
इसके बाद माननीय C.I.C. को मैंने 'द्वितीय अपील' किया, मुझे दो साल पर C.I.C. के श्रीमान् डिप्टी रजिष्ट्रार के File No. CIC/SB/A/2015/000404/दि.22.11.2016 की प्राप्ति हुई, जो कि माननीय सूचना आयुक्त श्री सुधीर भार्गव के समक्ष दि.06.12.2016 को एतदर्थ सुनवाई लिए थी ।
इनके परिप्रेक्ष्यत: 08-09 दिसंबर 2016 को भारत सरकार के माननीय स्वास्थ्य मंत्री श्री जगत प्रकाश नड्ढा ने प्रेसवार्त्ता कर कहा--"दुकानदारों को खाद्य-सामग्रियों को अखबारी कागजों पर नहीं परोसने चाहिए । इसपर सख़्ती से पालन के लिए नियमन बनाये जाएंगे, क्योंकि अखबारों में प्रिंटेड स्याही में कई खतरनाक रसायन मिले होते हैं, जिससे खाद्य-उपभोक्ता को कई खतरनाक बीमारी हो सकती हैं ।"
इसप्रकार से भारत सरकार ने मेरे प्रयासिक-सुझाव को दो साल बाद आखिरकार मान ही लिए । यह क्यों न हो, जब कार्य बिलकुल जनहित में हो !
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