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नवंबर, 2016 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

"पुराने नोटों पर 'गाँधी जी' के गलत-तस्वीर लगे हैं, वित्त मंत्रालय और RBI को मैंने सर्वप्रथम लिखा था : नए पत्रमुद्रा (नोट) का जारी होना, उसी के परिणाम"

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"पुराने नोटों पर 'गाँधी जी' के गलत-तस्वीर लगे हैं, वित्त मंत्रालय और RBI को मैंने सर्वप्रथम लिखा था : नए पत्रमुद्रा (नोट) का जारी होना, उसी के परिणाम" ----------------------------------------------------------------------------------------- वित्त मंत्रालय, भारत सरकार ने दि.14.11.2016 के अखबारों में बड़ा-सा विज्ञापन प्रकाशित कराया है, जो www.paisaboltahai.rbi.in के द्रष्टव्यश: है । प्रकाशित विज्ञापन का शीर्षक है- "अब आपके बैंकनोट नए डिजाईन में : भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नई श्रृंखला में ₹2000 और ₹500 के नोट जारी"। इनमें जारी दोनों नए नोट के अग्र और पृष्ठ भाग का तस्वीर को उसी रंग में सविश्लेषित प्रकाशित किया गया है । अखबार में प्रकाशित नए नोट और तथ्य सुस्पष्ट प्रतीत हो रहा है । अब मैं इस आलेख के शीर्षक "पुराने नोटों पर 'गाँधी जी' के गलत-तस्वीर लगे हैं, वित्त मंत्रालय और RBI को मैंने सर्वप्रथम लिखा था : नए पत्रमुद्रा (नोट) का जारी होना, उसी के परिणाम" विषय पर लौटते हैं । मैंने 21.01.2016 के RTI आवेदन वित्त मंत्रालय (आर्थिक कार्य विभाग), भा...

*'नयी मुद्रा' पुरानी और खोटी मुद्रा को प्रचलन से कर देती है बाहर*

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*'नयी मुद्रा' पुरानी और खोटी मुद्रा को प्रचलन से कर देती है बाहर* ---------------------------------------------------------------------------------- "भारत सरकार का अच्छा कदम,हमें निर्णय पर सहयोग करने चाहिए" ----------------------------------------------------------------------------------- अर्थशास्त्र के अकाट्य नियमों में -- 'नयी मुद्रा' व 'स्वच्छ मुद्रा' पुरानी, बुरी, अप्रचलनीय, खोटा, नकली मुद्रा को प्रचलन से बाहर कर देती है -- कोई नया नियम नहीं है । भारत सरकार द्वारा देश की आर्थिक ढाँचा को सुदृढ़ता प्रदान करने में किए गए उपक्रम कि "पुराने ₹500 और ₹1000 के नोट इतिहास में दर्ज़ हो गए (विशेष परिस्थिति को छोड़कर)" के प्रति हमें सादर आभार व्यक्त करने चाहिए । 'देश के नाम सन्देश' में माननीय प्रधानमन्त्री ने सुस्पष्ट कहा है कि 125 करोड़ भारतीयों के रुपये में किसी प्रकार के संकट के बादल नहीं उमड़े हैं । हालांकि व्यवस्था परिवर्तन पर कुछ दिन अफरा-तफरी रहेंगे, परंतु स्थिति फिर सामान्य हो जाएंगे । पुराने नोटों के लिए कुछ अत्यंत थोड़े द...

*"मा. विधायक द्वारा विद्यालय में 'राष्ट्रध्वज' फहराने के नियम उपलब्ध नहीं"*

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"मा. विधायक द्वारा विद्यालय में 'राष्ट्रध्वज' फहराने के नियम उपलब्ध नहीं" -------------------------------------------------------------------------------------- राज्य सूचना आयोग, पटना में स्थापित वाद सं. 128038/14-15 के आलोक में RTI सम्बंधित मेरा आवेदन (प्रपत्र-'क') पर अंतरित लोक सूचना पदाधिकारी के प्रसंगश: 2 साल के बाद जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय, कटिहार के जि.का.पदा., स्थापना, कटिहार के पत्रांक-- 3022 / स्था. शि. / दि. 02.11.2016 प्राप्त हुआ, जिनमें मनिहारी नगर पंचायत के दो उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों के तत्वश: सूचनोत्तर को कोट कर लिखा गया है---- ".... माननीय विधायक द्वारा राष्ट्रध्वज फहराये जाने संबंधी किसी प्रकार के नियम सम्बंधित दस्तावेज उपलब्ध नहीं है ।" ध्यातव्य है, दोनों विद्यालयों के लो.सू.पदा. ने यह भी लिखा है-- ".... किसी विद्यालय में प्रधानाध्यापक द्वारा राष्ट्रध्वज फहराये जाने की परम्परा है ।" जिनकी प्रति यथोक्त पत्रांक-पत्र के साथ संलग्न है और यथोक्त पत्रांक-पत्र साक्ष्यार्थ इस वाल पर है ।

*"छठ पर्व : जहाँ डूबते सूरज की भी पूजा होती है "*

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" छठ पर्व : जहाँ डूबते सूरज की भी पूजा होती है " ------------------------------------------------------------- 'दीपावली से छठ तक' नामक शीर्षक राष्ट्रीय साप्ताहिक 'आमख्याल' के दिनांक- 09.12.1993 अंक में छपा था । खासकर 'छठ' पर मेरे द्वारा लिखित और प्रेषित इसतरह के रिपोर्टिंग की आयु अब 23 बरस हो गयी है । सम्प्रति वर्ष-2016 में भारत के लगभग 25-30 करोड़ आबादी 'छठ' से प्रभावित हैं । यह कुल भारतीय मानवों के 5वाँ हिस्सा है । मूलत: बिहार, झारखण्ड सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश, प. बंगाल के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र, नेपाल के मधेशी क्षेत्र में 'छठ' मनाये जाते हैं । इन क्षेत्रों को छोड़कर जहाँ 'छठ' नहीं मनाये जा रहे हैं , वैसे राज्यों (राजस्थान) के राष्ट्रीय अखबार 'आमख्याल' में इनसे सम्बंधित रिपोर्टिंग-फ़ीचर पहलीबार मेरी ही छपी थी । यह पर्व folk festival लिए विस्तृत क्षेत्र और आबादी को प्रभावित करता है । 'छठ' विशुद्ध रूप से शाकाहार, आरवाहार, फलाहार इत्यादि आधारित पर्व है । मैं इस पर्व की आस्था, अंध-आस्था, लोक-मानस से उपजे गल्प या ...

*"रामधारी सिंह 'दिवाकर', पंकज चौधरी, शहंशाह आलम की टटकी रचना पढ़ा"*

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"रामधारी सिंह 'दिवाकर', पंकज चौधरी, शहंशाह आलम की टटकी रचना पढ़ा" ----------------------------------------------------------------------------------------- तीनों को काफी-काफी बरस हो गए , जानते हुए ! यह अलग बात है, 'पहचान' पैमाना मृत्युपर्यंत भी लोकेटेड नहीं हो पाता !! खैर, तीनों से अच्छी जान-पहचान है, यही यहाँ कहना ज्यादा श्रेयस्कर , समीचीन और प्रासंगिक है !!! डॉ. रामधारी सिंह 'दिवाकर' मेरे सर और पश्चश: वरेण्य मित्र हैं, पंकज चौधरी जी बड़े आत्मीय और शहंशाह आलम जी कभी-कभार मिलन-मित्र हैं !!!! किन्तु तीनों से 'मित्र' शब्द डंके की चोट के साथ उभरते हैं । कथाकार दिवाकर जी की कहानी 'देहरी भई बिदेस' पढ़ा, जो 07 नवम्बर '16 के 'आउटलुक' (हिंदी) में छपा है । इस कहानी में माता यशोदा ... मेरी माँ का नाम भी यही है, जो मेरे पास रहती है, परंतु कथा-पुत्र के तरह मैं हरगिज़ नहीं, हो भी नहीं सकता ! कहानी का प्रकाशन टटकी है, किन्तु कथा-विन्यास पुराना है । हाँ, दिवाकर जी रचित कहानी 'गाँठ' से मैं बेहद प्रभावित हुआ था । गाँठ ने जाति के अंद...